श्रीमते निगमान्तमहादेशिकाय नमः
श्रीमान् वेङ्कटनाथार्यः कवितार्किककेसरी ।
वेदान्ताचार्यवर्यो मे संनिधत्तां सदा हृदि ।
श्रीमहावीरवैभवम्
जयत्याश्रितसंत्रासध्वान्तविध्वंसनोदयः ।
प्रभावान् सीतया देव्या परमव्योमभास्करः ॥ 1 ॥
जय जय महावीर ॥ 2 ॥
महाधीर धौरेय ॥ 3 ॥
देवासुर समर समय समुदित निखिल निर्जर निर्धारित निरवधिक माहात्म्य ॥ 4 ॥
दशवदन दमित दैवत परिषदभ्यर्थित दाशरथिभाव ॥ 5 ॥
दिनकर कुल कमल दिवाकर ॥ 6 ॥
दिविषदधिपति रण सहचरण चतुर दशरथ चरमऋण विमोचन ॥ 7 ॥
कोसलसुता कुमार भाव कञ्चुकित कारणाकार ॥ 8 ॥
कौमार केळि गोपायित कौशिकाध्वर ॥ 9 ॥
रणाध्वर धुर्य भव्य दिव्यास्त्र बृन्द वन्दित ॥ 10 ॥
प्रणत जन विमत विमथन दुर्लळित दोर्लळित ॥ 11 ॥
तनुतर विशिख विताडन विघटित विशरारु शरारु ताटका ताटकेय ॥ 12 ॥
जडकिरण शकलधर जटिल नट पति मकुटतट नटनपटु विबुधसरिदतिबहुळ मधुगळन ललित पद नळिनरज उपमृदित निजवृजिन जहदुपल तनुरुचिर
परममुनिवर युवति नुत ॥ 13 ॥
कुशिकसुत कथित विदित नव विविध कथ ॥ 14 ॥
मैथिल नगर सुलोचना लोचन चकोर चन्द्र ॥ 15 ॥
खण्डपरशु कोदण्ड प्रकाण्ड खण्डन शौण्ड भुजदण्ड ॥ 16 ॥
चण्डकर किरण मण्डल बोधित पुण्डरीक वन रुचि लुण्टाक लोचन ॥ 17 ॥
मोचित जनक हृदय शङ्कातङ्क ॥ 18 ॥
परिहृत निखिल नरपति वरण जनकदुहितृकुचतट विहरण समुचित करतल ॥ 19 ॥
शतकोटि शतगुण कठिन परशुधर मुनिवर करधृत दुरवनमतम निज धनुराकर्षण प्रकाशित पारमेष्ठ्य ॥ 20 ॥
क्रतुहरशिखरि कन्तुक विहृत्युन्मुख जगदरुन्तुद जितहरि दन्ति दन्त दन्तुर दशवदन दमन कुशल दशशतभुज मुख नृपतिकुल रुधिर झर भरित पृथुतर तटाक तर्पित पितृक भृगुपति सुगति विहतिकर नत परुडिषु परिघ ॥ 21 ॥
अनृत भय मुषित हृदय पितृवचन पालन प्रतिज्ञाऽवज्ञात यौवराज्य ॥ 22 ॥
निषाद राज सौहृद सूचित सौशील्य सागर ॥ 23 ॥
भरद्वाज शासन परिगृहीत विचित्र चित्रकूट गिरि कटक तट रम्यावसथ ॥ 24 ॥
अनन्यशासनीय ॥ 25 ॥
प्रणत भरत मकुटतट सुघटित पादुकाग्र्याभिषेक निर्वर्तित सर्वलोक योगक्षेम ॥ 26 ॥
पिशित रुचि विहित दुरित वलमथन तनय बलिभुगनुगति सरभस शयन तृण शकल परिपतन भयचकित सकल सुर मुनिवर बहुमत महास्त्र सामर्थ्य ॥ 27 ॥
द्रुहिण हर वलमथन दुरारक्ष शरलक्ष्य ॥ 28 ॥
दण्डका तपोवन जङ्गम पारिजात ॥ 29 ॥
विराध हरिण शार्दूल ॥ 30 ॥
विलुळित बहुफल मख कलम रजनिचर मृग मृगयारम्भ संभृत चीरभृदनुरोध ॥ 31 ॥
त्रिशिरः शिरस्त्रितय तिमिर निरास वासरकर ॥ 32 ॥
दूषण जलनिधि शोषण तोषित ऋषिगण घोषित विजय घोषण ॥ 33 ॥
खरतर खर तरु खण्डन चण्ड पवन ॥ 34 ॥
द्विसप्त रक्षः सहस्र नळवन विलोलन महाकलभ ॥ 35 ॥
असहाय शूर ॥ 36 ॥
अनपाय साहस ॥ 37 ॥
महित महामृध दर्शन मुदित मैथिली दृढतर परिरम्भण विभव विरोपित विकट वीरव्रण ॥ 38 ॥
मारीच माया मृग चर्म परिकर्मित निर्भर दर्भास्तरण ॥ 39 ॥
विक्रम यशो लाभ विक्रीत जीवित गृध्रराज देह दिधक्षा लक्षित भक्तजन दाक्षिण्य ॥ 40 ॥
कल्पित विबुधभाव कबन्धाभिनन्दित ॥ 41 ॥
अवन्ध्य महिम मुनिजन भजन मुषित हृदय कलुष शबरी मोक्ष साक्षिभूत ॥ 42 ॥
प्रभञ्जन तनय भावुक भाषित रञ्जित हृदय ॥ 43 ॥
तरणिसुत शरणागति परतन्त्रीकृत स्वातन्त्र्य ॥ 44 ॥
दृढघटित कैलास कोटि विकट दुन्दुभि कङ्काळ कूट दूर विक्षेप दक्ष दक्षिणेतर पादाङ्गुष्ठ दरचलन विश्वस्त सुहृदाशय ॥ 45 ॥
अतिपृथुल बहु विटपि गिरि धरणि विवर युगपदुदय विवृत चित्रपुङ्ख वैचित्र्य ॥ 46 ॥
विपुल भुज शैलमूल निबिड निपीडित रावण रणरणक जनक चतुरुदधि विहरण चतुर कपिकुलपति हृदय विशाल शिलातल दारण दारुण शिलीमुख ॥ 47 ॥
अपार पारावार परिखा परिवृत परपुर परिसृत दवदहन जवन पवनभव कपिवर परिष्वङ्ग भावित सर्वस्व दान ॥48 ॥
अहित सहोदर रक्षः परिग्रह विसंवादि विविध सचिव विस्रम्भण समय संरम्भ समुज्जृम्भित सर्वेश्वर भाव ॥ 49 ॥
सकृत् प्रपन्न जन संरक्षण दीक्षित ॥ 50 ॥
वीर ॥ 51 ॥
सत्यव्रत ॥ 52 ॥
प्रतिशयन भूमिका भूषित पयोधि पुळिन ॥ 53 ॥
प्रळय शिखि परुष विशिख शिखा शोषिताकूपार वारिपूर ॥ 54 ॥
प्रबल रिपु कलह कुतुक चटुल कपिकुल करतल तूलित हृत गिरि निकर साधित सेतुपथ सीमा सीमन्तित समुद्र ॥ 55 ॥
द्रुतगति तरुमृग वरूथिनी निरुद्ध लङ्कावरोध वेपथु लास्य लीलोपदेश देशिक धनुर्ज्याघोष ॥ 56 ॥
गगन चर कनक गिरि गरिम धर निगममय निज गरुड गरुदनिल लव गळित विष वदन शर कदन ॥ 57 ॥
अकृतचर वनचर रणकरण वैलक्ष्य कूणिताक्ष बहुविध रक्षो बलाध्यक्ष वक्षःकवाट पाटन पटिम साटोप कोपावलेप ॥ 58 ॥
कटुरटदटनि टङ्कृति चटुल कठोर कार्मुक विनिर्गत विशङ्कट विशिख विताडन विघटित मकुट विह्वल विश्रवस्तनय विश्रम समय विश्राणन विख्यात विक्रम ॥ 59 ॥
कुम्भकर्ण कुलगिरि विदळन दम्भोळि भूत निः शङ्क कङ्कपत्र ॥ 60 ॥
अभिचरण हुतवह परिचरण विघटन सरभस परिपतद् अपरिमित कपिबल जलधि लहरि कलकलरव कुपित मघवजिदभिहननकृदनुज साक्षिक राक्षस द्वन्द्वयुद्ध ॥ 61 ॥
अप्रतिद्वन्द्व पौरुष ॥ 62 ॥
त्र्यम्बक समधिक घोरास्त्राडम्बर ॥ 63 ॥
सारथि हृत रथ सत्रप शात्रव सत्यापित प्रताप ॥ 64 ॥
शित शर कृत लवन दशमुख मुख दशक निपतन पुनरुदय दर गळित जनित दर तरळ हरिहय नयन नळिनवन रुचि खचित खतल निपतित सुरतरु कुसुम वितति सुरभित रथ पथ ॥ 65 ॥
अखिल जगदधिक भुजबल वरबल दशलपन लपनदशक लवन जनित कदन परवश रजनिचरयुवति विलपनवचन समविषय निगमशिखर निकर मुखर मुख मुनिवर परिपणित ॥ 66 ॥
अभिगत शतमख हुतवह पितृपति निरृति वरुण पवन धनद गिरिश मुख सुरपति नुति मुदित ॥ 67 ॥
अमित मति विधि विदित कथित निज विभव जलधि पृषतलव ॥ 68 ॥
विगत भय विबुध परिबृढ विबोधित वीरशयन शायित वानर पृतनौघ ॥ 69 ॥
स्वसमय विघटित सुघटित सहृदय सहधर्मचारिणीक ॥ 70 ॥
विभीषण वशंवदीकृत लङ्कैश्वर्य ॥ 71 ॥
निष्पन्न कृत्य ॥ 72 ॥
ख पुष्पित रिपु पक्ष ॥ 73 ॥
पुष्पक रभस गति गोष्पदीकृत गगनार्णव ॥ 74 ॥
प्रतिज्ञार्णव तरण कृत क्षण भरत मनोरथ संहित सिंहासनाधिरूढ ॥ 75 ॥
स्वामिन् ॥ 76 ॥
राघव सिंह ॥ 77 ॥
हाटकगिरि कटक लडह पादपीठ निकट तट परिलुठित निखिल नृपति किरीट कोटि विविध मणि गण किरण निकर नीराजित चरण राजीव ॥ 78 ॥
दिव्य भौमायोध्याधिदैवत ॥ 79 ॥
पितृवध कुपित परशुधर मुनि विहित नृपहनन कदन पूर्व काल प्रभव शतगुण प्रतिष्ठापित
धार्मिक राजवंश ॥ 80 ॥
शुभ चरित रत भरत खर्वित गर्व गन्धर्वयूथ गीत विजय गाथा शत ॥ 81 ॥
शासित मधुसुत शत्रुघ्न सेवित ॥ 82 ॥
कुश लव परिगृहीत कुल गाथा विशेष ॥ 83 ॥
विधिवश परिणमदमर भणिति कविवर रचित निज चरित निबन्धन निशमन निर्वृत ॥ 84 ॥
सर्व जन सम्मानित ॥ 85 ॥
पुनरुपस्थापित विमानवर विश्राणन प्रीणित वैश्रवण विश्रावित यशःप्रपञ्च ॥ 86 ॥
पञ्चतापन्न मुनिकुमार संजीवनामृत ॥ 87 ॥
त्रेतायुग प्रवर्तित कार्तयुग वृत्तान्त ॥ 88 ॥
अविकल बहुसुवर्ण हयमख सहस्र निर्वहण निर्वर्तित निज वर्णाश्रमधर्म ॥ 89 ॥
सर्व कर्म समाराध्य ॥ 90 ॥
सनातन धर्म ॥ 91 ॥
साकेत जनपद जनि धनिक जङ्गम तदितर जन्तुजात दिव्यगति दान दर्शित नित्य निःसीमवैभव ॥ 92 ॥
भव तपन तापित भक्तजन भद्राराम ॥ 93 ॥
श्रीरामभद्र ॥ 94 ॥
नमस्ते पुनस्ते नमः ॥ 95 ॥
चतुर्मुखेश्वरमुखैः पुत्रपौत्रादिशालिने ।
नमः सीतासमेताय रामाय गृहमेधिने ॥ 96 ॥
कविकथक सिंहकथितं कठोरसुकुमारगुम्भगम्भीरम् ।
भवभयभेषजमेतत् पठत महावीरवैभवं सुधियः ॥ 97 ॥
कवितार्किकसिंहाय कल्याणगुणशालिने।
श्रीमते वेङ्कटेशाय बेदान्तगुरवे नमः ॥