श्रीमते निगमान्तमहादेशिकाय नमः
श्रीमान् वेङ्कटनाथार्यः कवितार्किककेसरी ।
वेदान्ताचार्यवर्यो मे संनिधत्तां सदा हृदि ।
श्रीसुदर्शनाष्टकम्
प्रतिभटश्रेणिभीषण वरगुणस्तोमभूषण
जनिभयस्थानतारण जगदवस्थानकारण ।
निखिलदुष्कर्मकर्शन निगमसद्धर्मदर्शन
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
शुभजगद्रूपमण्डन सुरगणत्रासखण्डन
शतमखब्रह्मवन्दित शतपथब्रह्मनन्दित ।
प्रथितविद्वत्सपक्षित भजदहिर्बुध्न्यलक्षित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
स्फुटतटिज्जालपिञ्जर पृथुतरज्वालपञ्जर
परिगतप्रत्नविग्रह पटुतरप्रज्ञदुर्ग्रह ।
प्रहरणग्राममण्डित परिजनत्राणपण्डित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
निजपदप्रीतसद्गण निरुपधिस्फीतषड्गुण
निगमनिर्व्यूढवैभव निजपरव्यूहवैभव ।
हरिहयद्वेषिदारण हरपुरप्लोषकारण
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
दनुजविस्तारकर्तन जनितमिस्राविकर्तन
दनुजविद्यानिकर्तन भजदविद्यानिवर्तन ।
अमरदृष्टस्वविक्रम समरजुष्टभ्रमिक्रम
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
प्रतिमुखालीढबन्धुर पृथुमहाहेतिदन्तुर
विकटमायाबहिष्कृत विविधमालापरिष्कृत ।
स्थिरमहायन्त्रतन्त्रित दृढदयातन्त्रयन्त्रित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
महितसंपत्सदक्षर विहितसंपत्षडक्षर
षडरचक्रप्रतिष्ठित सकलतत्त्वप्रतिष्ठित ।
विविधसङ्कल्पकल्पक विबुधसङ्कल्पकल्पक
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
भुवननेत्र त्रयीमय सवनतेजस्त्रयीमय
निरवधिस्वादुचिन्मय निखिलशक्ते जगन्मय ।
अमितविश्वक्रियामय शमितविष्वग्भयामय
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥
द्विचतुष्कमिदं प्रभूतसारं
पठतां वेङ्कटनायकप्रणीतम् ।
विषमेऽपि मनोरथः प्रधावन्
न विहन्येत रथाङ्गधुर्यगुप्तः ॥9॥
कवितार्किकसिंहाय कल्याणगुणशालिने।
श्रीमते वेङ्कटेशाय बेदान्तगुरवे नमः ॥